"साधक को पक्का विश्वास हो कि राम-नाम मेरे हृदय मे है , और इस नाम का वाच्य नामी भी वही विद्यमान है।अब मेरा हृदय परमेश्वर का आसन-स्थान है।
यहां तेजोमय परम-पुरुष सुशोभित है।
मेरा तन भगवान का मंदिर बन गया है।वह आनंदकंद,सर्वशक्तिमय श्रीहरि मुझमें अवतरित हो गया है और वह परमात्मदेव रात-दिन निरन्तर मेरी पालना करता है।
साधक श्रद्धापूर्वक मनन करे कि अब मेरे तन में भगवान की कृपा मेरी साधना का काम आप ही आप कर रही है।
मेरे सब साधन अब राम कृपा से स्वयंसिद्ध होते चले जा रहे है। जब मैं श्रीराम-चरण-शरण में सर्व भाव से समर्पित हो गया हूँ तो मुझे साधना और सिद्धि दोनों की चिंता कुछ भी नही करनी चाहिये।
अब मेरी आत्मोन्नति परमात्मा श्रीराम की इच्छा से अवश्यमेव होती चली जायेगी और रोक-टोक रहित होती ही चली जायेगी।,,
यहां तेजोमय परम-पुरुष सुशोभित है।
मेरा तन भगवान का मंदिर बन गया है।वह आनंदकंद,सर्वशक्तिमय श्रीहरि मुझमें अवतरित हो गया है और वह परमात्मदेव रात-दिन निरन्तर मेरी पालना करता है।
साधक श्रद्धापूर्वक मनन करे कि अब मेरे तन में भगवान की कृपा मेरी साधना का काम आप ही आप कर रही है।
मेरे सब साधन अब राम कृपा से स्वयंसिद्ध होते चले जा रहे है। जब मैं श्रीराम-चरण-शरण में सर्व भाव से समर्पित हो गया हूँ तो मुझे साधना और सिद्धि दोनों की चिंता कुछ भी नही करनी चाहिये।
अब मेरी आत्मोन्नति परमात्मा श्रीराम की इच्छा से अवश्यमेव होती चली जायेगी और रोक-टोक रहित होती ही चली जायेगी।,,
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