कभी तो ऐसा अवसर आवे।
मेरे सत्य स्नेही साजन,
ऐसा अवसर आवे ॥
परम पुरुष के पुण्य प्रेम में,
मन मग्न हो निश दिन ।
भक्ति -भावना भीतर गहरा,
सुन्दर रंग बसावे ॥१॥
राम गीत सुन मत्त मैं झुलूं
सुधा स्वाद रस पाऊँ।
अविरल प्रेम जल बहे नयन से,
रोम रोम हरषावे ॥२॥
राम राम की धीमी धीमी धुन,
घट में जगे सुरीली ।
मृ्दु मधुर सुताल चाल चल,
हृदय में विलसावे ॥३॥
राम -कृपा का शक्ति शान्ति से,
सुखद अवतरण भी होवे ।
चारु चक्र सहस्त्र कमल में,
विमल ज्योति जग जावे ॥४॥
मेरे सत्य स्नेही साजन,
ऐसा अवसर आवे ॥
परम पुरुष के पुण्य प्रेम में,
मन मग्न हो निश दिन ।
भक्ति -भावना भीतर गहरा,
सुन्दर रंग बसावे ॥१॥
राम गीत सुन मत्त मैं झुलूं
सुधा स्वाद रस पाऊँ।
अविरल प्रेम जल बहे नयन से,
रोम रोम हरषावे ॥२॥
राम राम की धीमी धीमी धुन,
घट में जगे सुरीली ।
मृ्दु मधुर सुताल चाल चल,
हृदय में विलसावे ॥३॥
राम -कृपा का शक्ति शान्ति से,
सुखद अवतरण भी होवे ।
चारु चक्र सहस्त्र कमल में,
विमल ज्योति जग जावे ॥४॥
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